अपनी बर्बादी का सामान हम हर पल अपने कंधों पर उठाए घूम रहे हैं, ऊपर से यह शिकायत भी है कि हम अकेले क्यूँ है?
एक स्त्री पुरुष को कभी नही समझ सकती, यह वजन लगभग हर पुरुष के कंधों पर है..
एक पुरुष स्त्री को कभी नही समझ सकता, यह वजन भी लगभग हर स्त्री के कंधों पर है..
ये हिन्दू है वो मुस्लिम है, ये ईसाई है वो सिख है, यह वजन भी लगभग हर कंधे पर है..
उसकी जाती अलग है, यह वजन भी लगभग हर कंधे पर है..
यह छोटा है अभी समझता नही, वो बूढ़े है आज की दुनिया को नही समझते, यह वजन भी लगभग हर कंधे पर है..
जिनके पास तजुर्बा है उनके तजुर्बे से इनकार है, जो नासमझ है उसकी नादानी से इनकार है, यह वजन भी हर लगभग कंधे पर है..
क्यूंकि यह मेरा दोस्त है इसलिए इसे गलत मानने से इनकार है और वो मेरा दुश्मन है इसलिए उसे सही मानने से इनकार है, यह वजन भी लगभग हर कंधे पर है..
इतने वर्गीकरण करने के बाद भी अगर कोई ऐसा शख्स, जो इस वर्गीकरण में छूट जाता है तो उससे हमारी प्रतिस्पर्धा होने लगती है, उसे छोटा दिखाने की जिद्द है, उससे ऊपर उठ जाने की जिद्द है, यह वजन भी लगभग हर कंधे पर है..
हम हर पल अपनी बर्बादी का सामान अपने कंधों पर उठाए घूम रहे हैं, ऊपर से हमें यह शिकायत भी है कि हम अकेले क्यूँ है?
इन सबके बीच अगर कुछ ऐसा है जो हमसे कहीं छूट रहा है, जिस पर हम ध्यान नहीं दे रहे है तो वो है :
-- एक अदना सा ख्याल कि मैं भी एक इंसान हूँ वो भी एक इंसान है..
-- एक अंतर जिसका कि हम निरंतर अभ्यास कर रहे है..
-- उसी माटी का पुतले हम भी है उसी माटी के पुतले वो भी है..
-- कुछ खामियां हम में भी है और कुछ खामियां उनमें भी है..
-- बहुत कुछ है जिसे हम नजरंदाज कर सकते है..